श्री गीताजी ज्ञान अनुष्ठान
यहाँ अर्जुन विषाद योग (भगवद गीताजी अध्याय 1)
“धर्मक्षेत्र में भी मोह आ सकता है, ज्ञान से ही संकल्प जागेगा।”
1️⃣ मंच कितना भी पवित्र हो, मन विचलित हो सकता है
🪞 जैसे मंदिर में भी मोबाइल की घंटी मन भटका देती है, वैसे ही धर्मक्षेत्र में भी मोह आ सकता है।
✅ Action Step:
👉 हर शुभ अवसर या निर्णय के समय खुद से पूछें — “क्या मेरा मन स्थिर है या मैं किसी डर/भावनात्मक दबाव में हूँ?”
2️⃣ मोह का जन्म स्नेह, संबंध और डर से होता है
🔥 जैसे धुएँ से आँखें जलती हैं, वैसे ही मोह से दृष्टि धुंधली हो जाती है।
✅ Action Step:
👉 किसी निर्णय से पहले 5 मिनट शांति में बैठें, लिखें — “मुझे सबसे ज्यादा क्या बांध रहा है?”
👉 पहचानें: मोह है या सचमुच मेरा धर्म?
3️⃣ ज्ञान ही मोह का सही इलाज है
💡 अंधेरे में हाथ-पैर मारने से अच्छा है — एक दिया जलाना।
✅ Action Step:
👉 रोज एक आध्यात्मिक या प्रेरक विचार पढ़ें, और दिनभर उसे मन में दोहराएँ।
👉 गलत धारणाओं पर सवाल उठाएँ — “क्या यह मेरा डर बोल रहा है, या मेरा विवेक?”
4️⃣ संकल्प तभी जागेगा जब मन में स्पष्टता होगी
🎯 तीर तभी सही लगता है जब धनुष सीधा हो — मन स्थिर हो।
✅ Action Step:
👉 दिन की शुरुआत एक “दृढ़ संकल्प वाक्य” से करें। जैसे:
🔊 “मैं आज अपने डर पर नहीं, अपने कर्तव्य पर ध्यान दूँगा।”
5️⃣ धर्मक्षेत्र में विचलन, आत्मविकास का संकेत है
🌱 बीज जब अंकुर बनता है, तब धरती को चीरता है — दर्द होता है, पर विकास भी।
✅ Action Step:
👉 जब भी अंदर संघर्ष हो — घबराएँ नहीं। समझिए कि यही आत्म-निर्माण की प्रक्रिया है।
👉 उसे बाहर निकालिए, संवाद करिए, और फिर निर्णय लीजिए।
🪔 अंतिम सार (Daily Reminder):
“धर्मस्थल पर भी मोह आ सकता है — पर अगर तुम ज्ञान की ओर देखोगे, तो संकल्प भीतर से निकलेगा।”
@मनीष त्रिवेदी
